बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राज्य की राजनीति को एक बार फिर नया मोड़ दे दिया है। इस बार जनता ने बेहद एकतरफा फैसला सुनाते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को प्रचंड जीत दिलाई है। 243 सीटों वाली विधानसभा में गठबंधन ने बहुत बड़ी संख्या में सीटें हासिल कर लीं, जिससे स्पष्ट है कि राज्य के मतदाताओं ने मौजूदा नेतृत्व पर दोबारा भरोसा जताया है।
नीतीश कुमार का नेतृत्व फिर मजबूत हुआ
इस चुनाव के बाद यह लगभग तय माना जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। लंबे समय से बिहार की राजनीति का चेहरा रहे नीतीश कुमार के लिए यह जीत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल के वर्षों में उन्हें कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। जीत के रुझानों से साफ है कि जनता ने उनके “स्थिरता और प्रशासनिक अनुभव” को प्राथमिकता दी है।
महागठबंधन को बड़ा झटका
दूसरी ओर, राजद-कांग्रेस समेत महागठबंधन का प्रदर्शन उम्मीदों के बिल्कुल उलट रहा। तमाम प्रयासों और लगातार चुनावी रैलियों के बाद भी गठबंधन जनता को अपने पक्ष में नहीं कर सका। कई सीटों पर विपक्ष को शुरुआती चरण से ही संघर्ष करना पड़ा और अंततः गठबंधन बहुत कम सीटों पर सिमटता हुआ दिखाई दिया।
चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि महागठबंधन अपनी रणनीति और संगठन, दोनों स्तरों पर कमजोर दिखाई दिया, जिसकी वजह से मतदाताओं का भरोसा नहीं बन पाया।
चिराग पासवान की पार्टी ने दिखाया असर
इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी रहा कि चिराग पासवान की पार्टी ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराई। युवा नेतृत्व और आक्रामक प्रचार अभियान के कारण पार्टी पहली बार राज्य की मुख्य राजनीतिक चर्चा का हिस्सा बनी और कई जगहों पर अच्छा प्रदर्शन किया।
प्रशांत किशोर की नई पार्टी की शांत शुरुआत
प्रशांत किशोर द्वारा बनाई गई जन सुराज पार्टी ने चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, लेकिन बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सकी। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पहली बार चुनाव मैदान में उतरने के बावजूद पार्टी ने जमीनी स्तर पर एक आधार तैयार किया है, जिसका भविष्य में फायदा मिल सकता है।
चुनाव क्या संदेश देते हैं?
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मतदाताओं ने इस बार स्थिर शासन और विकास की योजनाओं को तरजीह दी।
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महिला और युवा मतदाताओं का समर्थन एनडीए के पक्ष में गया।
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विपक्ष अपने संदेश और नेतृत्व को लेकर मतदाताओं में भरोसा नहीं जगा सका।
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यह नतीजे आने वाले वर्ष में राष्ट्रीय राजनीति और पार्टी गठबंधनों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
जन mandate के बाद आगे क्या?
इतने मजबूत बहुमत के साथ नई सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदों पर खरा उतरने की होगी। रोजगार के अवसर, गांवों में बुनियादी सुविधाएँ, स्वास्थ्य सेवाएं और कानून-व्यवस्था अभी भी बिहार के प्रमुख मुद्दे हैं। जनता अब ठोस और तेज़ काम की उम्मीद कर रही है।

